आइना कब बनाओगे मुझ को
मुझ से किस दिन मिलाओगे मुझ को
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इस दर का हो या उस दर का हर पत्थर पत्थर है लेकिन
भरे हुए जाम पर सुराही का सर झुका तो बुरा लगेगा
हमारा दिल तो हमेशा से इक जगह पर है
बैठे-बैठे इक दम से चौंकाती है
वो पास क्या ज़रा सा मुस्कुरा के बैठ गया
बस मैं मायूस होने वाला था
किसी भूके से मत पूछो मोहब्बत किस को कहते हैं
अब तलक उस को ध्यान हो मेरा
शायद क़ज़ा ने मुझ को ख़ज़ाना बना दिया
बिछड़ कर भी हूँ ज़िंदा रहने वाला
अब उस का वस्ल महँगा चल रहा है
तुम्हारा सिर्फ़ हवाओं पे शक गया होगा