आज तो दिल के दर्द पर हँस कर
दर्द का दिल दुखा दिया मैं ने
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वैसे तू मेरे मकाँ तक तू चला आता है
अब तलक उस को ध्यान हो मेरा
रास्ते जो भी चमक-दार नज़र आते हैं
बिछड़ कर भी हूँ ज़िंदा रहने वाला
अपना कंगन समझ रहे हो क्या
दिल फिर उस कूचे में जाने वाला है
ऊँचे नीचे घर थे बस्ती में बहुत
किसी भूके से मत पूछो मोहब्बत किस को कहते हैं
उस के ख़त रात भर यूँ पढ़ता हूँ
पहले मुफ़्त में प्यास बटेगी
कोई तितली निशाने पर नहीं है