ग़म तो ग़म ही रहेंगे 'ज़ुबैर'
ग़म के उनवाँ बदल जाएँगे
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Rahat Indori
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Gulzar
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(709) Peoples Rate This
कितने चेहरों के रंग ज़र्द पड़े
हर एक लम्हा तिरी याद में बसर करना
हम जो गिर कर सँभल जाएँगे
फिर घड़ी आ गई अज़िय्यत की
एक ही घर के रहने वाले एक ही आँगन एक ही द्वार
ज़ेहन परेशाँ हो जाता है और भी कुछ तन्हाई में