एक इक कर के बहुत दुख साथ मेरे हो लिए
मरहला-दर-मरहला इक क़ाफ़िला बनता गया
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हर तरफ़ फैला हुआ था बे-यक़ीनी का धुआँ
लोग कहते हैं यहाँ एक हसीं रहता था
वाक़िआ कोई तो हो जाता सँभलने के लिए
है हर्फ़ हर्फ़ ज़ख़्म की सूरत खिला हुआ
दिल का ग़म से ग़म का नम से राब्ता बनता गया
फिर भी क्यूँ उस से मुलाक़ात न होने पाई
मेरा सारा बदन राख हो भी चुका मैं ने दिल को बचाया है तेरे लिए
इतनी सर्दी है कि मैं बाँहों की हरारत माँगूँ
साफ़ आईना है क्यूँ मुझे धुँदला दिखाई दे
आँखों में है बसा हुआ तूफ़ान देखना