बे-कराँ

तुम्हें पसंद है हर शब तुम्हारे बिस्तर पर

लिपट के तुम से हसीं नर्म चाँदनी सोए

निगार-ख़ाना-ए-फ़ितरत की दिलकशी सोए

मगर पसंद को रंग-ए-जुनूँ न देना था

गगन से चाँद को धरती पे क्यूँ बुलाती हो

नज़र से प्यार करो हाथ क्यूँ लगाती हो

मुसाफ़िरान-ए-शब-ए-ग़म की दिल-दही के लिए

तमाम उम्र उसे नूर बन के ढलना है

उदास रातों में क़िंदील बन के जलना है

यही बहुत है कि हर शब तुम्हारे बिस्तर पर

लिपट के तुम से हसीं नर्म चाँदनी सोए

गगन से चाँद न माँगो गगन पे रहने दो

नज़र से दूर सफ़ीना बहे तो बहने दो

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Be-karan In Hindi By Famous Poet Zubair Rizvi. Be-karan is written by Zubair Rizvi. Complete Poem Be-karan in Hindi by Zubair Rizvi. Download free Be-karan Poem for Youth in PDF. Be-karan is a Poem on Inspiration for young students. Share Be-karan with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.