धुआँ सिगरेट का बोतल का नशा सब दुश्मन-ए-जाँ हैं
कोई कहता है अपने हाथ से ये तल्ख़ियाँ रख दो
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बे-कराँ
वो बाद-ए-गर्म था बाद-ए-सबा के होते हुए
हम बिछड़ के तुम से बादल की तरह रोते रहे
पुराने लोग दरियाओं में नेकी डाल आते थे
मिलन मौसमों की सज़ा चाहता हूँ
बरसों में तुझे देखा तो एहसास हुआ है
वो जिस को दूर से देखा था अजनबी की तरह
भूली-बिसरी हुई यादों में कसक है कितनी
पूछ न हम से कैसे तुझ तक नक़्द-ए-दिल-ओ-जाँ लाए हम
शफ़क़-सिफ़ात जो पैकर दिखाई देता है
कहाँ मैं जाऊँ ग़म-ए-इश्क़-ए-राएगाँ ले कर
तब्दीली