गुलाबों के होंटों पे लब रख रहा हूँ
उसे देर तक सोचना चाहता हूँ
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नया जन्म
अंजाम क़िस्सा-गो का
शफ़क़-सिफ़ात जो पैकर दिखाई देता है
वो जिस को दूर से देखा था अजनबी की तरह
सफ़ा और सिद्क़ के बेटे
परिंदे लौट आए
तुम जहाँ अपनी मसाफ़त के निशाँ छोड़ गए
मैं अपनी दास्ताँ को आख़िर-ए-शब तक तो ले आया
कुछ दिनों इस शहर में हम लोग आवारा फिरें
कई कोठे चढ़ेगा वो कई ज़ीनों से उतरेगा
छोड़ कर घर की फ़ज़ा रानाइयाँ पछता गईं
कहाँ पे टूटा था रब्त-ए-कलाम याद नहीं