सुर्ख़ियाँ अख़बार की गलियों में ग़ुल करती रहीं
लोग अपने बंद कमरों में पड़े सोते रहे
Gulzar
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Javed Akhtar
Habib Jalib
Rahat Indori
Wasi Shah
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Parveen Shakir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
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दोनों हम-पेशा थे दोनों ही में याराना था
अकेले होने का ख़ौफ़
हवा की अंधी पनाहों में मत उछाल मुझे
कोई टूटा हुआ रिश्ता न दामन से उलझ जाए
ज़िंदगी जिन की रिफ़ाक़त पे बहुत नाज़ाँ थी
अपनी ज़ात के सारे ख़ुफ़िया रस्ते उस पर खोल दिए
बशारत पानी की
वो आ गया तो सारा परी-ख़ाना जी उठा
क़सीदे ले के सारे शौकत-ए-दरबार तक आए
जला है दिल या कोई घर ये देखना लोगो
शरीफ़-ज़ादा
कुछ दिनों इस शहर में हम लोग आवारा फिरें