रात के पिछले पहर इक सनसनाहट सी हुई
और फिर एक और फिर एक और आहट सी हुई
Mohsin Naqvi
Gulzar
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
Ahmad Faraz
Habib Jalib
Rahat Indori
Wasi Shah
Allama Iqbal
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तिलस्माती फ़ज़ा तख़्त-ए-सुलैमाँ पर लिए जाना
तेज़ हो जाएँ हवाएँ तो बगूला हो जाऊँ
घर नहीं बस्ती नहीं शोर-ए-फ़ुग़ाँ चारों तरफ़ है
उठा कर बर्क़-ओ-बाराँ से नज़र मंजधार पर रखना
फ़स्ल की जल्वागरी देखता हूँ
जबीं से नाख़ुन-ए-पा तक दिखाई क्यूँ नहीं देता
क़मर-गज़ीदा नज़र से हाला कहाँ से आया
चारों तरफ़ हैं ख़ार-ओ-ख़स दश्त में घर है बाग़ सा