बरसों से खड़ा हूँ हाथ उठाए
तासीर-ए-दुआ का मुंतज़िर हूँ
Anwar Masood
Wasi Shah
Habib Jalib
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Ahmad Faraz
Mohsin Naqvi
Gulzar
Jaun Eliya
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1253) Peoples Rate This
दीपक-राग है चाहत अपनी काहे सुनाएँ तुम्हें
हयात वक़्फ़-ए-ग़म-ए-रोज़गार क्यूँ करते
इश्क़ में मारके बला के रहे
रक्खा नहीं ग़ुर्बत ने किसी इक का भरम भी
न सो सका हूँ न शब जाग कर गुज़ारी है
सुनते हैं चमकता है वो चाँद अब भी सर-ए-बाम
ख़ुद को पाने की तलब में आरज़ू उस की भी थी
वो जिसे सारे ज़माने ने कहा मेरा रक़ीब
क़हत-ए-वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ है इन दिनों
अपनी सूरत बिगड़ गई लेकिन
लुट गया है सफ़र में जो कुछ था
पास हमारे आकर तुम बेगाना से क्यूँ हो