न सो सका हूँ न शब जाग कर गुज़ारी है
अजीब दिन हैं सुकूँ है न बे-क़रारी है
Habib Jalib
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Wasi Shah
Gulzar
Mohsin Naqvi
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1426) Peoples Rate This
रो लेते थे हँस लेते थे बस में न था जब अपना जी
अपनी सूरत बिगड़ गई लेकिन
सुनते हैं चमकता है वो चाँद अब भी सर-ए-बाम
ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है
दीपक-राग है चाहत अपनी काहे सुनाएँ तुम्हें
बरसों से खड़ा हूँ हाथ उठाए
पास हमारे आकर तुम बेगाना से क्यूँ हो
ख़ुद को पाने की तलब में आरज़ू उस की भी थी
हयात वक़्फ़-ए-ग़म-ए-रोज़गार क्यूँ करते
वो जिसे सारे ज़माने ने कहा मेरा रक़ीब