पास हमारे आकर तुम बेगाना से क्यूँ हो
चाहो तो हम फिर कुछ दूरी पर छोड़ आएँ तुम्हें
Anwar Masood
Gulzar
Allama Iqbal
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Jaun Eliya
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
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वो जिसे सारे ज़माने ने कहा मेरा रक़ीब
सुनते हैं चमकता है वो चाँद अब भी सर-ए-बाम
अपनी सूरत बिगड़ गई लेकिन
बाद-ए-तर्क-ए-उल्फ़त भी यूँ तो हम जिए लेकिन
इश्क़ में मारके बला के रहे
छोड़ कर दिल में गई वहशी हवा कुछ भी नहीं
क़हत-ए-वफ़ा-ए-वा'दा-ओ-पैमाँ है इन दिनों
हयात वक़्फ़-ए-ग़म-ए-रोज़गार क्यूँ करते
ख़ुद को पाने की तलब में आरज़ू उस की भी थी
ज़ुल्म तो ये है कि शाकी मिरे किरदार का है
दिन ऐसे यूँ तो आए ही कब थे जो रास थे
सहरा में घटा का मुंतज़िर हूँ