'आदिल' सजे हुए हैं सभी ख़्वाब ख़्वान पर
और इंतिज़ार-ए-ख़ल्क़-ए-ख़ुदा कर रहे हैं हम
Mir Taqi Mir
Wasi Shah
Rahat Indori
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Parveen Shakir
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Gulzar
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सो लेने दो अपना अपना काम करो चुप हो जाओ
सुनते हैं जो हम दश्त में पानी की कहानी
सफ़र पे जैसे कोई घर से हो के जाता है
यूँ उठे इक दिन कि लोगों को हुआ
कभी ख़ुशबू कभी आवाज़ बन जाना पड़ेगा
ये मेज़ ये किताब ये दीवार और मैं
शुक्र किया है इन पेड़ों ने सब्र की आदत डाली है
मैं जहाँ था वहीं रह गया माज़रत
हुई आग़ाज़ फूलों की कहानी
दश्त-ओ-दरिया की इब्तिदा से हैं
दिल में रहता है कोई दिल ही की ख़ातिर ख़ामोश
निकला हूँ शहर-ए-ख़्वाब से ऐसे अजीब हाल में