ये दर-ओ-दीवार पर बे-नाम से चुप-चाप साए
फूलों रस्तों और बच्चों की हिफ़ाज़त चाहते हैं
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Parveen Shakir
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Mohsin Naqvi
Gulzar
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Rahat Indori
Allama Iqbal
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कातता हूँ रात-भर अपने लहू की धार को
इन लबों से अब हमारे लफ़्ज़ रुख़्सत चाहते हैं
हम ने सारे हर्फ़ लिखे तो किस के लिए
हमारे शहर में आने की सूरत चाहती हैं
नदी किनारे बैठे रहना अच्छा है
बे-सबात सुब्ह शाम और मिरा वजूद
पेड़ों की घनी छाँव और चैत की हिद्दत थी
कुछ गुनह नहीं इस में ए'तिराफ़ ही कर लो
वो सानेहा हुआ था कि बस दिल दहल गए!