बेश-तर ख़ुदा पाया और बरमला पाया
हम ने तेरे बंदों को तुझ से भी सिवा पाया
Parveen Shakir
Habib Jalib
Rahat Indori
Gulzar
Mohsin Naqvi
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1157) Peoples Rate This
गुम-कर्दा-राह ख़ाक-बसर हूँ ज़रा ठहर
बसाई मैं ने जो क़ल्ब-ए-हज़ीं में
रास आने लगी थी तन्हाई
ज़िंदगी आज़ार थी आज़ार है तेरे बग़ैर
आता है नज़र अंजाम कि साक़ी रात गुज़रने वाली है
वो कहते हैं कि हम को उस के मरने पर तअ'ज्जुब है
जिस राह से उठा हूँ वहीं बैठ जाऊँगा
मेरे ग़म की तल्ख़ियों का इस से कुछ अंदाज़ा कर