उस बेवफ़ा से कर के वफ़ा मर-मिटा 'रज़ा'
इक क़िस्सा-ए-तवील का ये इख़्तिसार है
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समझ तो ये कि न समझे ख़ुद अपना रंग-ए-जुनूँ
उन के सितम भी कह नहीं सकते किसी से हम
हमीं ने उन की तरफ़ से मना लिया दिल को
हुस्न की फ़ितरत में दिल-आज़ारियाँ
बंदिशें इश्क़ में दुनिया से निराली देखें
मायूस ख़ुद-ब-ख़ुद दिल-ए-उम्मीद-वार है
अल्लाह नज़र कोई ठिकाना नहीं आता
क़िस्मत में ख़ुशी जितनी थी हुई और ग़म भी है जितना होना है
दर्द-ए-दिल और जान-लेवा पुर्सिशें
जो चाहते हो सो कहते हो चुप रहने की लज़्ज़त क्या जानो