इस ही बुनियाद पर क्यूँ न मिल जाएँ हम
आप तन्हा बहुत हम अकेले बहुत
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Habib Jalib
Rahat Indori
Gulzar
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Faiz Ahmad Faiz
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समुंदर पार आ बैठे मगर क्या
लगे है आसमाँ जैसा नहीं है
यक़ीं का दाएरा देखा है किस ने
आप के जाते ही हम को लग गई आवारगी
फूल के लायक़ फ़ज़ा रखनी ही थी
जो गुज़रता है गुज़र जाए जी
तुम अपने अक्स में क्या देखते हो
हम क्या कहें कि आबला-पाई से क्या मिला
रूह को क़ालिब के अंदर जानना मुश्किल हुआ
कभी सोचा है मिट्टी के अलावा
हर लम्हा मर्ग-ओ-ज़ीस्त में पैकार देखना
दुनिया ने जब डराया तो डरने में लग गया