दिल भी पागल है कि उस शख़्स से वाबस्ता है
जो किसी और का होने दे न अपना रक्खे
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किसी जानिब से भी परचम न लहू का निकला
मिज़ाज हम से ज़ियादा जुदा न था उस का
सारा शहर बिलकता है
मयूरका
आँख से दूर न हो दिल से उतर जाएगा
ये दिल का दर्द तो उम्रों का रोग है प्यारे
अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं
साक़िया एक नज़र जाम से पहले पहले
ज़ेर-ए-लब
इश्क़ नश्शा है न जादू जो उतर भी जाए
तेरे क़ामत से भी लिपटी है अमर-बेल कोई
दोस्ती का हाथ