सितम तो ये है कि ज़ालिम सुख़न-शनास नहीं
वो एक शख़्स कि शाएर बना गया मुझ को
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रात के पिछले पहर रोने के आदी रोए
सारा शहर बिलकता है
मुंतज़िर किस का हूँ टूटी हुई दहलीज़ पे मैं
हम को अच्छा नहीं लगता कोई हमनाम तिरा
तिरा क़ुर्ब था कि फ़िराक़ था वही तेरी जल्वागरी रही
तरस रहा हूँ मगर तू नज़र न आ मुझ को
न तेरा क़ुर्ब न बादा है क्या किया जाए
ईद-कार्ड
आज इक और बरस बीत गया उस के बग़ैर
ये दिल का दर्द तो उम्रों का रोग है प्यारे
याद आई है तो फिर टूट के याद आई है
भरी बहार में इक शाख़ पर खिला है गुलाब