न समझोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालो
तुम्हारी दास्ताँ तक भी न होगी दास्तानों में
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Gulzar
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ज़मीर-ए-लाला मय-ए-लाल से हुआ लबरेज़
तराना-ए-मिल्ली
समुंदर से मिले प्यासे को शबनम
जमाल-ए-इश्क़-ओ-मस्ती नय-नवाज़ी
जावेद के नाम
हादसा वो जो अभी पर्दा-ए-अफ़्लाक में है
अजब नहीं कि ख़ुदा तक तिरी रसाई हो
किसे ख़बर कि सफ़ीने डुबो चुकी कितने
अमीन-ए-राज़ है मर्दान-ए-हूर की दरवेशी
कमाल-ए-जोश-ए-जुनूँ में रहा मैं गर्म-ए-तवाफ़
नहीं तेरा नशेमन क़स्र-ए-सुल्तानी के गुम्बद पर
गुज़र जा अक़्ल से आगे कि ये नूर