कभी कभी तो ये दिल में सवाल उठता है
कि इस जुदाई में क्या उस ने पा लिया होगा
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चले ही जाएगी क्या दर्द की कटारी भला
कोई सदा न दूर तलक नक़्श-ए-पा कोई
ये नर्म हाथ मरे हाथ में थमा दीजे
वो बुत बिना निगाह जमाए खड़ा रहा
जब से पड़ी है उन से मुलाक़ात की तरह
खिला है फूल बहुत रोज़ में मुक़द्दर का
धूप हो गए साए जल गए शजर जैसे
हुआ करे अगर उस को कोई गिला होगा
कब लज़्ज़तों ने ज़ेहन का पीछा नहीं किया
चाँद तारे जिसे हर शब देखें