रहगुज़र भी तिरी पहले थी अजनबी
हर गली अब तिरी रहगुज़र हो गई
Mohsin Naqvi
Gulzar
Habib Jalib
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Jaun Eliya
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(667) Peoples Rate This
'अशहर' कहीं क़रीब ही तारीक ग़ार है
क्या क़द्र-ए-अना होगी जबीं जान रही है
मेरी दुनिया में समुंदर का कहीं नाम नहीं
अजनबियत थी मगर ख़ामोश इस्तिफ़्सार पर
वहीं के पत्थरों से पूछ मेरा हाल-ए-ज़िंदगी
शहर में छाई हुई दीवार-ता-दीवार थी
ज़िंदगी करना वो मुश्किल फ़न है 'अशहर' हाशमी
तिरा ग़ुरूर झुक के जब मिला मिरे वजूद से
है कौन जिस से कि वादा ख़ता नहीं होता
शोर कैसा है मिरे दिल के ख़राबे से उठा
उस से मिलने की तलब में जी लिए कुछ और दिन