ख़फ़ा न हो कि तिरा हुस्न ही कुछ ऐसा था
मैं तुझ से प्यार न करता तो और क्या करता
Gulzar
Jaun Eliya
Habib Jalib
Javed Akhtar
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(827) Peoples Rate This
एक समुंदर एक किनारा एक सितारा काफ़ी है
दीवार-ए-ख़स्तगी हूँ मुझे हाथ मत लगा
लरज़ लरज़ के दिल-ए-ना-तवाँ ठहर ही न जाए
जिसे दरपेश जुदाई हो उसे क्या मालूम
हर शख़्स इस हुजूम में तन्हा दिखाई दे
कभी ऐसा तमव्वुज तुम ने देखा है
एक नज़्म
मुझे तो ये भी फ़रेब-ए-हवास लगता है
मैं ने रोका भी नहीं और वो ठहरा भी नहीं
जाने वाले को कहाँ रोक सका है कोई
वो नख़्ल जो बार-वर हुए हैं
बुझी है आतिश-ए-रंग-ए-बहार आहिस्ता आहिस्ता