हाँ तुझे भी तो मयस्सर नहीं तुझ सा कोई
है तिरा अर्श भी वीराँ मिरे पहलू की तरह
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वो इक सुख़न ही हमारी सनद न बन जाए
मेहनत से मिल गया जो दफ़ीने के बीच था
तन्हाइयों के दश्त में भागे जो रात भर
तराश और भी अपने तसव्वुर-ए-रब को
यूँ मोहब्बत से न हम ख़ाना-ब-दोशों को बुला
आसमानों में भी दरवाज़ा लगा कर देखें
रात वहशत से गुरेज़ाँ था मैं आहू की तरह
इश्क़ तो अपने लहू में ही सँवरता है सो हम
कहीं जमाल-पज़ीरी की हद नहीं रखता
नुमू-पज़ीर हूँ हर दम कि मुझ में दम है अभी
क्या क्या न प्यास जागे मिरे दिल के दश्त में
तूफ़ान-ए-बहर ख़ाक डराता मुझे 'तुराब'