क़दमों से इतना दूर किनारा कभी न था

क़दमों से इतना दूर किनारा कभी न था

ना-क़ाबिल-ए-उबूर ये दरिया कभी न था

तुम सा हसीं इन आँखों ने देखा कभी न था

लेकिन ये सच नहीं कोई तुम सा कभी न था

है ज़िक्र-ए-यार क्यूँ शब-ए-ज़िंदाँ से दूर दूर

ऐ हम-नशीं ये तर्ज़ ग़ज़ल का कभी न था

कमरे में दिल के उस के अलावा कोई नहीं

हैरान हूँ कि ऐसा अँधेरा कभी न था

किस ने बिसात-ए-बहस के मोहरे बदल दिए

तन्हा तो था वो पहले भी गूँगा कभी न था

इमरोज़-ए-इंतिज़ार का फ़र्दा तो कल भी है

अंदोह-ए-इमशबी का सवेरा कभी न था

हर ज़ेहन में हमेशा सुलगता है ये सवाल

आख़िर हुआ वो क्यूँ जिसे होना कभी न था

दीवाना था भटक गया गुम हो गया है क़ैस

ख़ाली मगर कजावा-ए-लैला कभी न था

कल भी इसी दयार में था रौशनी का क़हत

ऐसा मगर चराग़ का धंदा कभी न था

पिघली कुछ और बर्फ़ तो इक और शहर-ए-ख़्वाब

यूँ बह गया नशेब में गोया कभी न था

बरसा है किस बबूल पे अब्र-ए-बहार-ख़ेज़

इतना हरा तो ज़ख़्म-ए-तमन्ना कभी न था

उस ने भी इल्तिफ़ात से देखा था कब 'ख़लिश'

मैं ने भी उस के बारे में सोचा कभी न था

(885) Peoples Rate This

Your Thoughts and Comments

Qadmon Se Itna Dur Kinara Kabhi Na Tha In Hindi By Famous Poet Badr-e-Alam Khalish. Qadmon Se Itna Dur Kinara Kabhi Na Tha is written by Badr-e-Alam Khalish. Complete Poem Qadmon Se Itna Dur Kinara Kabhi Na Tha in Hindi by Badr-e-Alam Khalish. Download free Qadmon Se Itna Dur Kinara Kabhi Na Tha Poem for Youth in PDF. Qadmon Se Itna Dur Kinara Kabhi Na Tha is a Poem on Inspiration for young students. Share Qadmon Se Itna Dur Kinara Kabhi Na Tha with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.