जो है चश्मा उसे सराब करो
जो है चश्मा उसे सराब करो
शहर-ए-तिश्ना में इंक़लाब करो
मुस्कुराने का फ़न तो बअ'द का है
पहले साअ'त का इंतिख़ाब करो
अब के ताबीर मसअला न रहे
ये जो दुनिया है इस को ख़्वाब करो
और पकने दो इश्क़ की मिट्टी
पार उजलत में मत चनाब करो
अहद-ए-नौ के अजब तक़ाज़े हैं
जो है ख़ुशबू उसे गुलाब करो
यूँ ख़ुशी की हवस न जाएगी
एक इक ग़म को बे-नक़ाब करो
हरसिंगारों से बोलती है ज़मीं
अब की रुत में मुझे किताब करो
पहले पूछो सवाल अपने तईं
फिर ख़ला से तलब जवाब करो
(1040) Peoples Rate This