आइने में है फिर वही सूरत
यूँ ही होती है तर्जुमानी क्या
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Javed Akhtar
Rahat Indori
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Anwar Masood
Parveen Shakir
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(645) Peoples Rate This
गो ज़रा तेज़ शुआएँ थीं ज़रा मंद थे हम
बात बिगड़ी हुई बनी सी रही
मिले अब के तो रोए टूट कर हम
चाल अपनी अदा से चलते हैं
समुंदर है कोई आँखों में शायद
वही आँसू वही माज़ी के क़िस्से
कम न होगी ये सरगिरानी क्या
अब के ताबीर मसअला न रहे
उतर जाता तो रुस्वाई बहुत होती
मिरे कुछ भी कहे को काटता है
अपना बिगड़ा हुआ बनाव लिए