कशिश तुझ सी न थी तेरे ग़मों में
लब-ओ-लहजा मगर हाँ हू-ब-हू था
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हमें देखा न कर उड़ती नज़र से
जो है चश्मा उसे सराब करो
मिरे कुछ भी कहे को काटता है
बारिशों में अब के याद आए बहुत
ये किस की याद का दिल पर रफ़ू था
और कुछ देर ग़म नज़र में रख
हमें इस तरह ही होना था आबाद
आइने में है फिर वही सूरत
एक नश्शा है ख़ुद-नुमाई भी
हुए हम बे-सर-ओ-सामान लेकिन
मिले अब के तो रोए टूट कर हम