गुफ़्तुगू उन से रोज़ होती है
मुद्दतों सामना नहीं होता
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नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही
प्यार ही प्यार है सब लोग बराबर हैं यहाँ
मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा
चाय की प्याली में नीली टेबलेट घोली
सर-ए-राह कुछ भी कहा नहीं कभी उस के घर मैं गया नहीं
हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं
शबनम के आँसू फूल पर ये तो वही क़िस्सा हुआ
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
अजब चराग़ हूँ दिन रात जलता रहता हूँ
हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा