हज़ारों शेर मेरे सो गए काग़ज़ की क़ब्रों में
अजब माँ हूँ कोई बच्चा मिरा ज़िंदा नहीं रहता
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मैं कब तन्हा हुआ था याद होगा
दुआ करो कि ये पौदा सदा हरा ही लगे
हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए
इस शहर के बादल तिरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं
भला हम मिले भी तो क्या मिले वही दूरियाँ वही फ़ासले
परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता
तुम मोहब्बत को खेल कहते हो
मैं जब सो जाऊँ इन आँखों पे अपने होंट रख देना
मुझे मालूम है उस का ठिकाना फिर कहाँ होगा
नाम पानी पे लिखने से क्या फ़ाएदा
ख़ुदा हम को ऐसी ख़ुदाई न दे
पहचान अपनी हम ने मिटाई है इस तरह