नहीं है मेरे मुक़द्दर में रौशनी न सही
ये खिड़की खोलो ज़रा सुब्ह की हवा ही लगे
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ख़ानदानी रिश्तों में अक्सर रक़ाबत है बहुत
महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों से
उदास आँखों से आँसू नहीं निकलते हैं
उदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओ
कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी
दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है
उदासी आसमाँ है दिल मिरा कितना अकेला है
तुम्हारे घर के सभी रास्तों को काट गई
कहीं चाँद राहों में खो गया कहीं चाँदनी भी भटक गई
इस शहर के बादल तिरी ज़ुल्फ़ों की तरह हैं
मैं तमाम तारे उठा उठा के ग़रीब लोगों में बाँट दूँ