पहचान अपनी हम ने मिटाई है इस तरह
बच्चों में कोई बात हमारी न आएगी
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फिर से ख़ुदा बनाएगा कोई नया जहाँ
मोहब्बत अदावत वफ़ा बे-रुख़ी
हम तो कुछ देर हँस भी लेते हैं
गले में उस के ख़ुदा की अजीब बरकत है
उसे पाक नज़रों से चूमना भी इबादतों में शुमार है
ये एक पेड़ है आ इस से मिल के रो लें हम
कमरे वीराँ आँगन ख़ाली फिर ये कैसी आवाज़ें
सर झुकाओगे तो पत्थर देवता हो जाएगा
महलों में हम ने कितने सितारे सजा दिए
फ़लक से चाँद सितारों से जाम लेना है
उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से
कहाँ आँसुओं की ये सौग़ात होगी