शोहरत की बुलंदी भी पल भर का तमाशा है
जिस डाल पे बैठे हो वो टूट भी सकती है
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हँसी मासूम सी बच्चों की कापी में इबारत सी
अजीब रात थी कल तुम भी आ के लौट गए
हम ने तो बाज़ार में दुनिया बेची और ख़रीदी है
घर से निकले अगर हम बहक जाएँगे
न जाने कब तिरे दिल पर नई सी दस्तक हो
एक औरत से वफ़ा करने का ये तोहफ़ा मिला
उदास रात है कोई तो ख़्वाब दे जाओ
उसे पाक नज़रों से चूमना भी इबादतों में शुमार है
तहज़ीब के लिबास उतर जाएँगे जनाब
मुझे इश्तिहार सी लगती हैं ये मोहब्बतों की कहानियाँ
पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
इक परी के साथ मौजों पर टहलता रात को