उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िंदगी की शाम हो जाए
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लोबान में चिंगारी जैसे कोई रख जाए
वो शख़्स जिस को दिल ओ जाँ से बढ़ के चाहा था
वो चेहरा किताबी रहा सामने
वो चाँदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है
दुश्मनी का सफ़र इक क़दम दो क़दम
दुश्मनी जम कर करो लेकिन ये गुंजाइश रहे
अजीब रात थी कल तुम भी आ के लौट गए
सर से पा तक वो गुलाबों का शजर लगता है
मिरी ग़ज़ल की तरह उस की भी हुकूमत है
मेरी आँखों में तिरे प्यार का आँसू आए
हसीं तो और हैं लेकिन कोई कहाँ तुझ सा
मान मौसम का कहा छाई घटा जाम उठा