गूँजूँगा तेरे ज़ेहन के गुम्बद में रात-दिन
जिस को न तू भुला सके वो गुफ़्तुगू हूँ मैं
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ज़ाहिर मिरी शिकस्त के आसार भी नहीं
इक हुस्न-ए-बे-मिसाल के जो रू-ब-रू हूँ मैं
ख़ुद अपना ए'तिबार गँवाता रहा हूँ मैं
इस बहर-ए-बे-सदा में कुछ और नीचे जाएँ
किसे ख़बर है मैं दिल से कि जाँ से गुज़रूँगा
ऐसा लगता है मुख़ालिफ़ है ख़ुदाई मेरी
भूला-बिसरा ख़्वाब हुए हम
तेरे नाम का तारा जाने कब दिखाई दे
हब्स के दिनों में भी घर से कब निकलते हैं
ख़ुद अपनी ही गहराई में