तेरे नाम का तारा जाने कब दिखाई दे
इक झलक की ख़ातिर हम रात भर टहलते हैं
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इक हुस्न-ए-बे-मिसाल के जो रू-ब-रू हूँ मैं
ऐसा लगता है मुख़ालिफ़ है ख़ुदाई मेरी
भूला-बिसरा ख़्वाब हुए हम
ख़ुद अपना ए'तिबार गँवाता रहा हूँ मैं
किसे ख़बर है मैं दिल से कि जाँ से गुज़रूँगा
हब्स के दिनों में भी घर से कब निकलते हैं
गूँजूँगा तेरे ज़ेहन के गुम्बद में रात-दिन
ज़ाहिर मिरी शिकस्त के आसार भी नहीं
इस बहर-ए-बे-सदा में कुछ और नीचे जाएँ
ख़ुद अपनी ही गहराई में