सभी इंसाँ फ़रिश्ते हो गए हैं
किसी दीवार में साया नहीं है
Mohsin Naqvi
Gulzar
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Javed Akhtar
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Allama Iqbal
Anwar Masood
Wasi Shah
Habib Jalib
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इतना अच्छा न अगर होता तो हम सा होता
मिरी भी मान मिरा अक्स मत दिखा मुझ को
यूँ न जान अश्क हमें जो गया बाना न मिला
कैसे कहें कि चार तरफ़ दायरा न था
उसे छत पर खड़े देखा था मैं ने
वो: एक
जब चौदहवीं का चाँद निकलता दिखाई दे
जो दिल में उस को बसाए वो और कुछ न करे
एक दुनिया ने तुझे देखा है लेकिन मैं ने
उन की गोद में सर रख कर जब आँसू आँसू रोया था
हम से भली चाल चली चाँदनी
दायरा खींच के बैठा हूँ बड़ी मुद्दत से