जो हल्दी से मोहब्बत है तो यारो
किसी चूहे को पंसारी न करना
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'ग़ालिब' को बुरा क्यूँ कहो
मार खाने से मुझे आर नहीं है लेकिन
साहब ये चाहते हैं मैं हर हुक्म पर कहूँ
अदब को जिंस-ए-बाज़ारी न करना
एक शादी तो ठीक है लेकिन
तमाशा मिरे आगे
या रब मिरे नसीब में अक्ल-ए-हलाल हो
जादा-ए-फ़न में बड़े सख़्त मक़ाम आते हैं
अदीब-ओ-शायर-ओ-फ़नकार बोते हैं जो शजर
हुस्न पर ए'तिबार हद कर दी
अजब अख़बार लिक्खा जा रहा है