ऐ कूज़ा-गर!
मिरी मिट्टी ले
मेरा पानी ले
मुझे गूँध ज़रा
मुझे चाक चढ़ा
मुझे रंग-बिरंगे बर्तन दे
Javed Akhtar
Wasi Shah
Gulzar
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Rahat Indori
Habib Jalib
Parveen Shakir
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उसे ख़बर थी कि हम विसाल और हिज्र इक साथ चाहते हैं
हर इक जानिब उन आँखों का इशारा जा रहा है
मिट्टी की ये दीवार कहीं टूट न जाए
मैं रोना चाहता हूँ ख़ूब रोना चाहता हूँ मैं
झगड़े ख़ुदा से हो गए अहद-ए-शबाब में
मोहब्बत चाहते हो क्यूँ वफ़ा क्यूँ माँगते हो
कुर्सी-ए-दिल पे तिरे जाते ही दर्द आ बैठे
बीमार हो गया हूँ शिफा-ख़ाना चाहिए
तुम कुछ भी करो होश में आने के नहीं हम
ख़त बहुत उस के पढ़े हैं कभी देखा नहीं है
जिस्म की क़ैद से सब रंग तुम्हारे निकल आए
किस सलीक़े से वो मुझ में रात-भर रह कर गया