थे उस के हाथ लहू में हमारे ग़र्क़ मगर
ज़रा भी शर्म न आई उसे मुकरते हुए
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Jaun Eliya
Gulzar
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Parveen Shakir
Habib Jalib
Javed Akhtar
Allama Iqbal
Ahmad Faraz
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1424) Peoples Rate This
कोई मौसम हो कुछ भी हो सफ़र करना ही पड़ता है
दिल की ये आग बुझा दी किस ने
तमाम फेंके गए पत्थरों पे भारी था
जिस्म के अंदर जो सूरज तप रहा है
सोचते रहने से क्या क़िस्मत का लिक्खा जाएगा
हिजाब उस के मिरे बीच अगर नहीं कोई
मसअला ये है कि उस के दिल में घर कैसे करें
था अबस ख़ौफ़ कि आसेब-ए-गुमाँ मैं ही था
अब के जुनूँ हुआ तो गरेबाँ को फाड़ कर
रौशनी से किस तरह पर्दा करेंगे
ये और बात कि वो तिश्ना-ए-जवाब रहा