मैं ने माँ का लिबास जब पहना
मुझ को तितली ने अपने रंग दिए
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Habib Jalib
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Anwar Masood
Ahmad Faraz
Gulzar
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1346) Peoples Rate This
रूह की माँग है वो जिस्म का सामान नहीं
बिखर रहे थे हर इक सम्त काएनात के रंग
कौन ख़्वाहिश करे कि और जिए
कोई नहीं है मेरे जैसा चारों ओर
मैं टूट कर उसे चाहूँ ये इख़्तियार भी हो
अधूरे लफ़्ज़ थे आवाज़ ग़ैर-वाज़ेह थी
अच्छा लगता है
क्या कहूँ उस से कि जो बात समझता ही नहीं
मिरी ज़मीं पे लगी आप के नगर में लगी
हमारी नस्ल सँवरती है देख कर हम को
कब उस की फ़त्ह की ख़्वाहिश को जीत सकती थी