अलाव

रात-भर सर्द हवा चलती रही

रात-भर हम ने अलाव तापा

मैं ने माज़ी से कई ख़ुश्क सी शाख़ें काटीं

तुम ने भी गुज़रे हुए लम्हों के पत्ते तोड़े

मैं ने जेबों से निकालीं सभी सूखी नज़्में

तुम ने भी हाथों से मुरझाए हुए ख़त खोले

अपनी इन आँखों से मैं ने कई माँजे तोड़े

और हाथों से कई बासी लकीरें फेंकीं

तुम ने पलकों पे नमी सूख गई थी सो गिरा दी

रात भर जो भी मिला उगते बदन पर हम को

काट के डाल दिया जलते अलाव में उसे

रात-भर फूँकों से हर लौ को जगाए रक्खा

और दो जिस्मों के ईंधन को जलाए रक्खा

रात-भर बुझते हुए रिश्ते को तापा हम ने

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Alaw In Hindi By Famous Poet Gulzar. Alaw is written by Gulzar. Complete Poem Alaw in Hindi by Gulzar. Download free Alaw Poem for Youth in PDF. Alaw is a Poem on Inspiration for young students. Share Alaw with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.