अपने हमराह जो आते हो इधर से पहले
दश्त पड़ता है मियाँ इश्क़ में घर से पहले
Rahat Indori
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अर्श के तारे तोड़ के लाएँ काविश लोग हज़ार करें
एक दिन देखने को आ जाते
जब दहर के ग़म से अमाँ न मिली हम लोगों ने इश्क़ ईजाद किया
कातिक का चाँद
लोग हिलाल-ए-शाम से बढ़ कर पल में माह-ए-तमाम हुए
लोग पूछेंगे
सुन तो लिया किसी नार की ख़ातिर काटा कोह निकाली नहर
दरवाज़ा खुला रखना
ये कौन आया
रात आ कर गुज़र भी जाती है
क्या धोका देने आओगी
एक बार कहो तुम मेरी हो