वहशत-ए-दिल के ख़रीदार भी नापैद हुए
कौन अब इश्क़ के बाज़ार में खोलेगा दुकाँ
Faiz Ahmad Faiz
Rahat Indori
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Allama Iqbal
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Gulzar
Anwar Masood
Jaun Eliya
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(990) Peoples Rate This
वो रातें चाँद के साथ गईं वो बातें चाँद के साथ गईं
दिल हिज्र के दर्द से बोझल है अब आन मिलो तो बेहतर हो
कल चौदहवीं की रात थी शब भर रहा चर्चा तिरा
सुन तो लिया किसी नार की ख़ातिर काटा कोह निकाली नहर
'इंशा'-जी है नाम उन्ही का चाहो तो तुम से मिलवाएँ
दिल-आशोब
झुलसी सी इक बस्ती में
जाने तू क्या ढूँढ रहा है बस्ती में वीराने में
कल हम ने सपना देखा है
पिछले-पहर के सन्नाटे में
पीत करना तो हम से निभाना सजन हम ने पहले ही दिन था कहा ना सजन
हम जंगल के जोगी हम को एक जगह आराम कहाँ