इस लिए सब से अलग है मिरी ख़ुशबू 'आमी'
मुश्क-ए-मज़दूर पसीने में लिए फिरता हूँ
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इस दश्त से आगे भी कोई दश्त-ए-गुमाँ है
मैं सच कहूँ पस-ए-दीवार झूट बोलते हैं
आख़िर इक दिन सब को मरना होता है
तुझ से इक हाथ क्या मिला लिया है
जितने पानी में कोई डूब के मर सकता है
परिंदा आइने से क्या लड़ेगा
एहतियातन उसे छुआ नहीं है
ज़ख़्म अब तक वही सीने में लिए फिरता हूँ
बात दिल को मिरे लगी नहीं है
हम-साए में शैतान भी रहता है ख़ुदा भी
कोई मजनूँ कोई फ़रहाद बना फिरता है