कैफ़ियत-ओ-ज़ौक़ और ज़िक्र-ओ-औराद
करता हूँ सदा मैं अपनी शानें तब्दील
ऐ बे-ख़बरी की नींद सोने वालो
मुलम्मा की अँगूठी
बदला नहीं कोई भेस नाचारी से
अल-हक़ कि नहीं है ग़ैर हरगिज़ मौजूद
मा'लूम का नाम है निशाँ है न असर
हम आलम-ए-ख़्वाब में हैं या हम हैं ख़्वाब
इख़्फ़ा के लिए है इस क़दर जोश-ओ-ख़रोश
तेज़ी नहीं मिनजुमला-ए-औसाफ़-ए-कमाल
लाखों चीज़ें बना के भेजें अंग्रेज़
जब तक कि सबक़ मिलाप का याद रहा