था रंग-ए-बहार बे-नवाई कि न था
तारीक है रात और दुनिया ज़ख़्ख़ार
जो चाहिए वो तो है अज़ल से मौजूद
गर्मी का मौसम
तक़रीर से वो फ़ुज़ूँ बयान से बाहर
गर रूह न पाबंद-ए-तअ'य्युन होती
आया हूँ मैं जानिब-ए-अदम हस्ती से
कहते हैं जो अहल-ए-अक़्ल हैं दूर-अंदेश
वाहिद मुतकल्लिम का हो जो मुंकिर
पन चक्की
है बार-ए-ख़ुदा कि आलम-आरा तू है
लाखों चीज़ें बना के भेजें अंग्रेज़