चौपाए की तरह तू किताबों से न लद
हम आलम-ए-ख़्वाब में हैं या हम हैं ख़्वाब
बा-ईं हमा-सादगी है पुरकारी भी
एक वक़्त में एक काम
जो तेज़ क़दम थे वो गए दूर निकल
वाहिद मुतकल्लिम का हो जो मुंकिर
जब गू-ए-ज़मीं ने उस पे डाला साया
किस तौर से किस तरह से क्यूँ कर पाया
ऐ बार-ए-ख़ुदा ये शोर-ओ-ग़ौग़ा क्या है
जो चाहिए वो तो है अज़ल से मौजूद
ऐ बे-ख़बरी की नींद सोने वालो
फ़ितरत के मुताबिक़ अगर इंसाँ ले काम