है बार-ए-ख़ुदा कि आलम-आरा तू है
दाना-ए-निहान-ओ-आश्कारा तो है
हर शख़्स को है तेरे करम की उम्मीद
हर क़ौम का आसरा सहारा तू है
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Rahat Indori
Javed Akhtar
Gulzar
Allama Iqbal
Anwar Masood
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
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हम आलम-ए-ख़्वाब में हैं या हम हैं ख़्वाब
अब क़ौम की जो रस्म है सो ऊल-जुलूल
कहते हैं जो अहल-ए-अक़्ल हैं दूर-अंदेश
किस तौर से किस तरह से क्यूँ कर पाया
गर्मी का मौसम
आजिज़ है ख़याल और तफ़क्कुर-ए-हैराँ
क्या कहते हैं इस में मुफ़्तियान-ए-इस्लाम
होती नहीं फ़िक्र से कोई अफ़्ज़ाइश
दुनिया का न खा फ़रेब वीराँ है ये
तक़रीर से वो फ़ुज़ूँ बयान से बाहर
रात
अपने ही दिल अपनों का दुखाते हैं बहुत