ऐ रौनक़-ए-लाला-ज़ार वापस आ जा
ये बज़्म-गीर अमल है बे-नग़्मा-ओ-सौत
बंदे क्या चाहता है दाम-ओ-दीनार
बाक़ी नहीं एक शुऊर रखने वाला
नागिन बन कर मुझे न डसना बादल
कल रात गए ऐन-ए-तरब के हंगाम
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा नफ़्स को अपने पहचान
क़ानून नहीं कोई फ़ितरत के सिवा
थे पहले खिलौनों की तलब में बेताब
इस दहर में इक नफ़्स का धोका हूँ मैं
जल्वों की है बारगाह मेरे दिल में
ग़ुंचे तेरी ज़िंदगी पे दिल हिलता है